Monday, 24 April 2023

पहचान

मैं एक नारी मैं पुत्री मैं एक जननी

मैं एक शिक्षिका हूं या दिशा दर्शिका

पहचान अपनी कैसे बताऊं

मन के विश्वास को मैं कैसे दर्शाऊं

 जो घटित हो रहा समाज में

मैं उसकी प्रत्यक्ष मूर्ति कैसे बनूं

कठिन राह समूहों से निर्मित

अपने सरल पथ का चयन कैसे करूं

कभी पति की कल्पना में

विश्वास कर्त्तव्य के रंग कैसे भरूं

माता की जीवंत मूर्ति की अवहेलना ना कर सकूं

नारी के विभिन्न रूपों में

यथार्थ रूप कैसे धरूं

जीती हूं इस विश्वास से

राह आसान मैं कर सकूं

कभी पुत्री कभी जननी कभी पत्नी कभी शिक्षिका

के कर्तव्य को पूरा कर सकूं

जीर्ण शीर्ण पथ की राही बनकर

मानव हित में नई प्रेरणा भर सकूं

शांत सौम्य संयम विश्वास जगाकर

आत्मनिर्भरता जागृति का मार्ग प्रशस्त कर सकूं

 मैं एक नारी मैं एक जननी में एक पत्नी मैं एक शिक्षिका।

आपकी बिंदु।

 

अनोखी जिंदगी

दर्द को सीने में दबा कर जो मुस्कुरा दिया

जलने वालों ने तो अपने होश ही गंवा दिया

खुशनसीब है वो कितनी, ऐसा लोग समझते हैं

मन की टिस को दबाकर भी हम हंसते हैं

गैरों की बात क्या करें अपनों से धोखा खाया

जलती हुई लकड़ी को हाथों में लेकर दबाया

उस जलन की क्या नुमाइश करें हम

जिंदगी तुझसे क्या शिकायत करें हम

जितना मिला खुशी से स्वीकार किया

ईश्वर रचित सत्य को आत्मसात किया

मुश्किल है समझना हमारी अदा निराली हैं

जीवन मृत्यु होली के संग दिवाली है।

मानती हूं कि दूसरों से मैंने कम है पाया

हां क्योंकि,

निज पतन के मूल्य पर कुछ नहीं कमाया

आसान नहीं होता मन को संतृप्त करना

पाने की चाहत में मन को विक्षिप्त करना

पर फिर भी,संकल्प की मैं इतनी धनी हूं

इस सृष्टि के कण-कण में बसी हूं।

आपकी

बिन्दु रानी।

अनोखी जिंदगी

दर्द को सीने में दबा कर जो मुस्कुरा दिया

जलने वालों ने तो अपने होश ही गंवा दिया

खुशनसीब है वो कितनी, ऐसा लोग समझते हैं

मन की टिस को दबाकर भी हम हंसते हैं

गैरों की बात क्या करें अपनों से धोखा खाया

जलती हुई लकड़ी को हाथों में लेकर दबाया

उस जलन की क्या नुमाइश करें हम

जिंदगी तुझसे क्या शिकायत करें हम

जितना मिला खुशी से स्वीकार किया

ईश्वर रचित सत्य को आत्मसात किया

मुश्किल है समझना हमारी अदा निराली हैं

जीवन मृत्यु होली के संग दिवाली है।

मानती हूं कि दूसरों से मैंने कम है पाया

हां क्योंकि,

निज पतन के मूल्य पर कुछ नहीं कमाया

आसान नहीं होता मन को संतृप्त करना

पाने की चाहत में मन को विक्षिप्त करना

पर फिर भी,संकल्प की मैं इतनी धनी हूं

इस सृष्टि के कण-कण में बसी हूं।

आपकी

बिन्दु रानी।

विकास की ओर

 विकास की ओर

एक बार जो देखा था खिड़की से
वह समय बहुत पुराना था
धुंधली सी यादें आ रही हैं
वह पक्षियों का चहचहाना था
 हमें लगा वह दिन बीत गया
 पर क्या मालूम वह वापस आएगा
इस रोग जनित समाज को
अपनी कोलाहल सुनाएगा
हर ओर फैली महामारी है
 मन में कहीं डर के बीच
एक आत्मविश्वास हमने पाली है
 जब प्रकृति ने अपना रूप धरा
सब सिमट गए अपने घर में
पशु पक्षी ही तो बाहर हैं
अपनी मधुर तानों के साथ
प्रकृति से आंख मिलाते हैं
आज की इस भयावहता में
प्राचीन संस्कृति खिलखिलाती है
बच्चे बूढ़े और जवानों को
अपना संदेश फैलाती है
 नर हो ना हो निराश कभी
हर युद्ध से नहीं घबराएगें
 संकल्प धैर्य और शील से
आगे उचित कदम बढ़ाएंगे
अनुशासन के बीच रहेंगे
घर-घर ज्योत जलाएंगे
इस महामारी को हराकर
अपने देश को सबल बनाएंगे।

बिन्दु
जमशेदपुर