Monday, 24 April 2023

विकास की ओर

 विकास की ओर

एक बार जो देखा था खिड़की से
वह समय बहुत पुराना था
धुंधली सी यादें आ रही हैं
वह पक्षियों का चहचहाना था
 हमें लगा वह दिन बीत गया
 पर क्या मालूम वह वापस आएगा
इस रोग जनित समाज को
अपनी कोलाहल सुनाएगा
हर ओर फैली महामारी है
 मन में कहीं डर के बीच
एक आत्मविश्वास हमने पाली है
 जब प्रकृति ने अपना रूप धरा
सब सिमट गए अपने घर में
पशु पक्षी ही तो बाहर हैं
अपनी मधुर तानों के साथ
प्रकृति से आंख मिलाते हैं
आज की इस भयावहता में
प्राचीन संस्कृति खिलखिलाती है
बच्चे बूढ़े और जवानों को
अपना संदेश फैलाती है
 नर हो ना हो निराश कभी
हर युद्ध से नहीं घबराएगें
 संकल्प धैर्य और शील से
आगे उचित कदम बढ़ाएंगे
अनुशासन के बीच रहेंगे
घर-घर ज्योत जलाएंगे
इस महामारी को हराकर
अपने देश को सबल बनाएंगे।

बिन्दु
जमशेदपुर

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